• संतोष सारंग
रागात्मकता, गेय काव्यत्मकता, प्रयोगधर्मिता व प्रगतिशीलता धरती व जनपद के कवि त्रिलोचन की काव्य कला व विचार यात्रा की खास विशेषता रही है. त्रिलोचन की काव्य-कृतियां धरती के गीतों, प्रकृति के अनुपम चित्रण, जीवन की त्रासदी, आम आदमी के दुख-दर्द, राग-द्वेश का दस्तावेज तो हैं ही, किंतु ‘साॅनेट’ उनके लेखन कर्म की उत्कृष्ट उपलब्धि कही जायेगी. ‘साॅनेट’ चैदह पंक्तियों का एक विदेशी काव्यरूप है, जो इटली, फ्रांस होते हुए हिंदी साहित्य में प्रवेश किया. वैसे तो प्रसाद, निराला और प्रभाकर माचवे ने भी ‘साॅनेट’ को अंगीकार किया, लेकिन त्रिलोचन हिंदी को ‘साॅनेट’ रचना के जरिये गहराई तक सींचनेवाले सर्वश्रेष्ठ कवि कहे जायेंगे. केदारनाथ सिंह उन्हें साॅनेट का पर्याय कहा है. साॅनेट में जो सफलता इस कवि को मिली है, हिंदी के किसी अन्य कवि को नहीं मिली. इसलिए तो त्रिलोचन को साॅनेट का प्रतिनिधि कवि भी कहा जाता है.

भारतीय हिंदी साहित्य के इतिहास में सबसे अधिक करीब साढ़े पांच सौ साॅनेट लिखने का रिकार्ड त्रिलोचन के नाम है. उन्होंने साॅनेट के हर चरण में चैबीस मात्रिक ध्वनियों की व्यवस्था की है- ग्यारह और तेरह के विश्राम से. यह हिंदी का जातीय छंद रोला है. त्रिलोचन ने पाश्चात्य साहित्य के दो महान मनीषियों पेट्रार्क और शेक्सपियर को आत्मसात तो किया, लेकिन ‘‘उन्होंने साॅनेट के अभिजात्य को छोड़ा है, उसके नागर-शिल्प को जनवादी संरचना में ढाला है.’’1 त्रिलोचन और उनके साॅनेट को समझने के लिए शमशेर के इस साॅनेट पर गौर करें -

‘‘साॅनेट और त्रिलोचन: काठी दोनों की है
एक, कठिन प्रकार में बंधी सत्य सरलता...
साधे गहरी सांस सहज ही...ऐसा लगता
जैसे पर्वत तोड़ रहा हो कोई निर्भय
सागर तल में खड़ा अकेला: वज्र हृदयमय.’’


मजबूत संकल्प के साथ यदि त्रिलोचन आगे नहीं बढ़ते, तो साॅनेट का रचना-कर्म इतना आसान नहीं था. वे खुद स्वीकार करते हैं कि साॅनेट का मार्ग सरल नहीं है. शमशेर को लगता है- जैसे कोई निर्भय पत्थर तोड़ रहा हो. सागर तल में खड़ा अकेला: वज्र हृदयमय. ममता कालिया भी कुछ ऐसा ही मानते हुए लिखती हैं कि त्रिलोचन ने साॅनेट को एक चुनौती की तरह स्वीकार किया है और एक समाधान की तरह उसका हल दिया है.
प्रयोग की दृष्टि से त्रिलोचन ने हिंदी जगत के लिए ऐतिहासिक कार्य किया है. प्रेमगत गान से बाहर निकालकर साॅनेट को त्रिलोचन ने धरा-धान्य, ग्राम्य जीवन व आमजनों की समस्याओं को उद्घाटित करने का माध्यम बनाया. ‘दिगंत’ में संकलित उनके साॅनेट पर दृष्टिपात करें, तो अभिव्यंजना के उनके पैनेपन व शैली की विशिष्टता से परिचय हो जाता है. त्रिलोचन स्वयं को ‘ध्वनि ग्राहक’ कहते हैं। ‘इन्होंने अपने सामाजिक परिवेश को कभी अपनी काव्य-चेतना और लेखनी के दायरे से बाहर नहीं जाने दिया. (ध्वनिग्राहक हूं मैं/समाज में उठनेवाली/ध्वनियां पकड़ लिया करता हूं... )’2  गांव-समाज से उफनने-उठनेवाली लहरों-आवाजों को पकड़ने की कला में माहिर है यह कवि. जब-जब जीवन में अंधेरा छाया, तब-तब कवि और आर्तनाद किया, झूम कर गाया. सघन अंधकार से कभी घबराया नहीं, बल्कि अपनी स्वर-लहरियों से उसे छांट डाला. विषम परिस्थितियों में साॅनेट रूपी ताजमहल के हर नग और चमक-दमक उठते हैं. त्रिलोचन की यह दृढ़ता उनके साॅनेट में भी अभिव्यक्त होता है-
  ‘‘जब-जब दुख की रात घिरी तब-तब मैं गाया/खुलकर गाता रहा, अंधेरे में/स्वर मेरा और उदात्त हो गया.’’3
शमशेर जिस कवि को ‘वज्र हृदयमय’ कहते हैं, उस कवि का हृदय कोमल जान पड़ता है. दूसरे का दुख देखकर उनकी काव्य कला और निखर जाती है. साॅनेट के रूप में आकार ले लेती है. साॅनेट प्रगतिशील विचारधारा के इस कवि की आत्माभिव्यक्ति का सबसे सहज माध्यम बन पड़ा है.     

संदर्भ सूची :
1. रेवती रमण, भारतीय साहित्य के निर्माता : त्रिलोचन, पृ. 53
2. वागर्थ, अंक : 257, दिसंबर 2016, पृ. 19 
3. रेवती रमण, भारतीय साहित्य के निर्माता : त्रिलोचन, पृ. 55