कफन


श्याम बाबू प्रखंड कार्यालय में क्लर्क के पद पर कार्यरत हैं। उनकी शादी तय होनेवाली है। लड़की याद-दोस्तों से लेकर नाना-नानी, परदादा-परदादी तक को पसंद है। लड़की कामधेनु बाप की बेटी जो है। फिर भी शादी पक्की होने में कुछ अड़चनें आन पड़ी हैं।
लड़के वाले की तरफ से प्रेषित ‘दहेज लिस्ट’ को लेकर लड़की के बाप को कुछ आपत्ति है। वैसे तो ‘दहेज लिस्ट’ में लिखी लगभग सभी मांगें पूरी करने को तैयार है बेटी का बाप। दो लाख रुपये नकद, लड़के को सूट-पैंट-कोट, सोने की अंगूठी, चेन व घड़ी, वाॅशिंग मशीन, सिलाई मशीन, गैस चूल्हा, कार, कलर टीवी, वीसीपी, फ्रिज, गोदरेज, एसी, कूलर, बरतन, दस सेट सिलिंग फैन, एक साइकिल यानी रईसी सुविधाओं की तमाम चीजें। अड़चन है कि लिस्ट में पचीस साडि़यां, ब्लाउज और पेटीकोट के कपड़े, पचीस-पचीस मीटर शर्ट-पैंट के कपड़े भी मांगे गये हैं।
लड़की का बाप भावी समधी से पूछता है-‘और मांगें तो समझ में आती हैं, लेकिन ये पचीस-पचीस साडि़यां और पचीस-पचीस मीटर...!’ बीच में ही टोकते हुए अगुआ बोला-‘ये कपड़े शादी समारोह में शरीक होने वाले सभी रिश्तेदारों को विदाई के समय देने के लिए होगा।
बेटी का बाप बोला-‘आपने बेटा पैदा किया है तो कम-से-कम इतना भी शौक नहीं है कि बेटे की शादी में अपनी जेब से भी कुछ पैसे खर्च करें।’
बीच से आवाज आयी-‘दहेज लिस्ट’ में पचीस मीटर कफन भी जोड़ दिया जाये, ताकि रिश्तेदार मरेंगे, तो इन्हें कफन भी खरीदना न पड़े।’ 
  • संतोष सारंग