राजनीति है भाई
यहां सब चलता है,
इलेक्शन के बाद
वोटर हाथ मलता है।

झूठ-फरेब और चापलूसी
मक्कारों का सिक्का जमता है,
झूठे वादे और लफ्फाजी
षड्यंत्रकारी वो चाल चलता है।

ल्टी-पुल्टी बातों में फांस
तरह-तरह के जाल बुनता है,
मगरूर हो ऐसे चलता है
जनता की न एक सुनता है।

क-धक धोती, मलमल कुर्ता
काली कमाई पर वह पलता है,
 घोड़ा-गाड़ी, बंगला-मोटर
विरोधियों को देख वह जलता है।

मानदारी की बात न कर
पावर, पैसा तू पकड़,
नैतिकता, शुचिता बेकार की बातें
बस ढोंग-ढकोसला ही चलता है।

नाटकबाजी और शोशेबाजी
बहुरुपिये का रूप धरता है,
झूठ इतनी बार बोलता है कि
सबसे सच्चा दिखने लगता है।

बेटा-बेटी, भाई-भतीजा
यहां सब चलता है
अजी, देश हित की बात छोड़िये,
अपनी जेब तो खूब भरता है।

राजनीति है भाई
यहां सब चलता है
सड़कें सूनी, संसद मौन
बस खद्दरधारी नेता बोलता है।

- संतोष सारंग