--------------- © संतोष सारंग
मैं क्यों जाऊं तुम्हारे मंदिरों में
जहां अछूतों का प्रवेश वर्जित रहा
जिसने स्त्रियों को बनाया देवदासी
मैं क्यों पूजूं तेरे भगवान को
जो छूने से हो जाता अपवित्र
गंगाजल से करना होता शुद्धि
मैं क्यों गाऊं उसकी आरती
जिसे गर्भगृह तक जाना मना है
चाहे क्यों न बन जाऊं राष्ट्रपति ही
मैं क्यों पूजूं वेद-गीता, मनुस्मृति को
जिसने बनाया हमें अछूत, नीच
जिसमें लिखे हैं हमारे लिए अपशब्द
मैं क्यों रहूं तुम्हारे कथित सनातन में
जहां हमें नहीं समझा जाता आदमी
जहां मिलता है सिर्फ अपमान
कुचला जाता हमारा स्वाभिमान
मंदिर, मंत्र, भगवान और धर्मग्रंथ
ये सब तुमने बनाया खुद के लिए
ये सब साधन हैं तुम्हारे पोषण के
ये हथियार हैं शूद्रों के शोषण के।
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