मुझे दूरदर्शन पटना द्वारा प्रसारित कार्यक्रम 'पर्यावरण दर्शन' के लिए स्क्रिप्ट लिखने का एक अवसर मिला. एक दिन दूरदर्शन के राजीव जी का फ़ोन आया कि बरेला झील पर एक स्टोरी करनी है और हम चाहते हैं कि इसका स्क्रिप्ट आप ही लिखे. मैंने हामी भर दी. स्टोरी शूट करने के लिए तारीख तय हुआ. दूरदर्शन की टीम के साथ मैं बरेला झील के लिए निकल लिया. वहां दिन भर रहा. फूटेज शूट किया गया. वहां जाने के बाद पता चला कि इस साल बरेला में विदेशी पक्षी नहीं आई. बरेला इस बार पूरी तरह सूख गया. बहरहाल, मुझे तो स्क्रिप्ट लिखनी थी. सो मैं लिखने की तैयारी करने लगा. दूरदर्शन के साथ स्क्रिप्ट पर यह मेरा पहला अनुभव था. मैं थोडा-थोडा डरा हुआ था कि पता नहीं दूरदर्शन के अधिकारी को स्क्रिप्ट पसंद आएगा कि नहीं. मैंने लिखना शुरू किया. एक पत्रकार मित्र विनय कुमार, जो प्रभात खबर में संवाददाता हैं को मैंने स्क्रिप्ट के बारे में डिस्कस किया. एक और पत्रकार मित्र पुष्पराज जी से फोन पर बात हुई. उन्होंने भरोसा दिलाया कि आप लिखिए बढ़िया ही लिखेंगे. हिम्मत कर लिख डाला और स्क्रिप्ट की कॉपी लेकर पटना चल दिया. वहां राममोहन सिंह जी मेरा इंतज़ार कर रहे थे. उन्होंने मुझे कार्यक्रम अधिशासी रत्ना पुरकायस्थ से मिलवाया. रत्ना जी ने स्क्रिप्ट देखा और लगीं प्रशंसा करने. वे बोली-सारंग जी, आप बढ़िया लिखते हैं. आपकी लिखावट भी सुन्दर है. उनके कार्यालय में और कई लोग बैठे थे. वे सब भी उत्सुक होकर स्क्रिप्ट की कॉपी लेकर देखने लगे. रत्ना जी ने कहा कि मैं आपसे आगे भी काम करना हैं. मैं अपनी लेखनी की प्रशंसा सुन रोमांचित हो उठा. लगा कि मुझे असली और सबसे बड़ा पुरस्कार मिल गया. अपनी लेखनी को लेकर मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया. दूरदर्शन से लौटते वक्त राजीव जी ने बताया कि जब आप बरेला में कैमरा के सामने बोल रहे थे तभी लगा कि आपमें टेलेंट है. जिस आत्मविश्वास के साथ बोल रहे थे, उससे हम दंग थे. आप एंकरिंग बढ़िया करेंगे. 

-- ११ दिसंबर २०१० को संध्या ५.३० बजे 'पर्यावरण दर्शन' कार्यक्रम में बरैला झील पर स्टोरी प्रसारित हुई. मेरे स्क्रिप्ट की एक लाइन भी नहीं काटी गयी. यह दूरदर्शन के साथ काम करने का पहला अनुभव था. इसका श्रेय लेखक-पत्रकार पुष्पराज को जाता है.