- संतोेष सारंग
बेटा
मां और बीबी के बीच
ऐसे पिसता है जैसे
जांता के दो पाटों के बीच
पिसता है धन-धान्य
शादी के बाद
मां को लगता है
बेटा बदल गया है
सिर दुखने पर कल तक
वह आता था मेरे आंचल में छुपने
आज वह तलाशता है बीबी की पल्लू
मां की हथेली तरसती है
बेटा का माथा सहलाने को
मां को फिर लगता है
बेटा बदल गया है
शादी के बाद
बीबी को लगता है
बुढ़िया का खजाना मिल गया
मां की ममता छीनने पर खुश है वह
प्यार की तशतरी लिये खड़ी है वह
पति को कब्जे में करने का सुकून
उधर सास बेचारी है दुख से लदी
बेटा के लिए मां और बीबी
दोनों हैं तराजू का पल्ला
वह दोनों को खुशी देने का
कर रहा भरसक प्रयास
लेकिन मां को लगता है
बंट गया है उसका प्यार
मां को देता अधिक वक्त
तो बीबी हो जाती उदास
बीबी को अधिक दुलारता
तो मां हो जाती निराश
आखिर क्या करे बेटा बेचारा
सिलवट पर उसका
अरमान पिस रहा है
चाह कर भी वह दोनों को
नहीं कर पा रहा खुश
जिंदगी बन गयी है
उसकी नरक जैसी
आखिर क्या करे
बेटा बेचारा!
0 Comments