डॉ बीडी शर्मा |
- आदिवासी मामलों के जानकार डॉ बीडी शर्मा ने कहा
- मुजफ्फरपुर में सप्ताह भर ले रहे रहे स्वास्थ्य लाभ
- सरकारी नीतियों के खिलाफ 1981 में छोड़ा था कलक्टर पद
- सरकार की आबकारी नीति का विरोध करते हैं शर्मा
- कभी सर्किट हाउस ने नहीं रहे डॉ शर्मा
क्या होगा समाज का?
दरअसल, देश के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि हम अमेरिकी साम्राज्यवाद की चंगुल में फंसे हैं. देश में ईमानदारी नहीं है. जिसे देखो, वही लाख-करोड़ लेकर जेब में घूम रहा है. जब मैं कलक्टर था, तब सबसे बड़े अधिकारी का वेतन साढ़े तीन हजार था. आज तो लाखों में वेतन पाने वाले अधिकारी हैं. वेतनमान में इतना बड़ा अंतर है, आमदनी में इतनी विषमता है कि समाज का विकास क्या होगा?
आदिवासियों का दुख देखा
गत एक सप्ताह से मुजफ्फरपुर में साहित्यकार डॉ नंदकिशोर नंदन के यहां डॉ शर्मा रह रहे हैं. वे स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं. बीमार डॉ शर्मा देश की समस्यायों से चिंतित हैं। वे कहते हैं, मैं कभी सर्किट हाऊस में नहीं रहा. कलक्टर रहते आदिवासियों की झोपड़ियों में रात बीता कर उनकी जिंदगी को निकट से देखा. भगवान ने आदिवासियों को क्या नहीं दिया है. जल, जंगल, जमीन एवं तमाम तरह के प्राकृतिक संसाधन दिया, फिर भी वे गरीब बने हैं. आखिर इसका जिम्मेवार कौन है? आम आदमी के बुनियादी अधिकारियों की आज किसी को चिंता नहीं है. नक्सल का मुद्दा कॉम्लेक्स इश्यू है. आज के अधिकारी, नीति-निर्धारक एसी कमरा व सर्किट हाऊस छोड़ना नहीं चाहते हैं. ऐसे में जनता क्या करेगी? उनका आक्रोश बाहर तो आयेगा ही न. करोड़ से 20 हजार कमाई
बस्तर का कल्कटर रहते हुए 1975 में मैंने जिले में शराब के ठेके को बंद करा दिया. शराब से जिले को सालाना एक करोड़ की आमदनी होती थी, कमिश्नर ने शराब के ठेके के लिए टेंडर निकालने के लिए चिट्ठी जारी की, तो मैंने साफ-साफ कह दिया था कि मैं ईमानदारी से कलक्टर की डय़ूटी करूंगा. बस्तर के जंगल में रहनेवाले आदिवासियों की जिंदगी को शराब ने उजाड़ बना दिया है. इसलिए मैंने ठेके पर रोक लगा दी. अंतत: उस साल जिले को शराब से मात्र 20 हजार की कमाई हुई. आज की स्थिति है कि घर-घर में शराब की दुकान खुल गयी है.
संसाधनों की लूट
‘टूटे वायदों का अनटूटा इतिहास‘ पुस्तक में मैंने लिखा है कि कैसे पूंजीवादी और साम्राज्यवादी ताकतें एक गहरी साजिश के तहत समाज को तोड़कर इंसान को अकेला मरने को छोड़ दिया है. देश के संसाधनों की लूट और आमलोगों के लिए गुलामी से बदतर जिंदगी हम देख रहे हैं. इसी अंतर्विरोध को देखते हुए भारत जन आंदोलन का गठन किया.
- संतोष सारंग/मुजफ्फरपुर
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