कौन कहता है कि 

अच्छे दिन नहीं आए 

अच्छे दिन बेखौफ आए

धन्नासेठों, साहूकारों के लिए आए

धर्म के ठेकेदारों के लिए आए

अमीरों, जमींदारों के लिए आए

लुटेरों, बंटमारों के लिए आए।


कौन कहता है कि 

अच्छे दिन नहीं आए 

अच्छे दिन बन-ठन कर आए

देश के असली गद्दारों के लिए आए

अंग्रेजों के तिमारदारों के लिए आए

मुगलों के रिश्तेदारों के लिए आए

गांधी के हत्यारों के लिए आए।


कौन कहता है कि 

अच्छे दिन नहीं आए 

अच्छे दिन चुपचाप आए

लोकतंत्र के लठैतों के लिए आए

संविधान के शत्रुओं के लिए आए

सांप्रदायिकता के सामंतों के लिए आए 

हिटलरशाही के कद्रदानों के लिए आए। 


कौन कहता है कि 

अच्छे दिन नहीं आए 

अच्छे दिन खुशियां लेकर आए 

झूठों के सरदारों के लिए आए 

जुमलों के जागीरदारों के लिए आए 

नफ़रत के व्यापारों के लिए आए 

सियासत के सौदागरों के लिए आए।


कौन कहता है कि 

अच्छे दिन नहीं आए 

अच्छे दिन बहार लेकर आए

द्विज-जनों के लिए आए 

स्वयंभू शंकराचार्यों के लिए आए 

फर्जी साधु-संतों के लिए आए 

मनु मीडिया के लिए आए।


कौन कहता है कि 

अच्छे दिन नहीं आए 

हां, मैं कहता हूं कि नहीं आए

गरीब, मजलूम मजदूरों के लिए नहीं आए

किसान, छोटे कारोबारियों के लिए नहीं आए 

बेरोजगार नौजवानों के लिए नहीं आए 

शूद्रों, अछूतों के लिए नहीं आए।


हां, मैं कहता हूं 

डंके की चोट पर कहता हूं 

मानवतावादियों के लिए नहीं आए 

जनतंत्र के पहरेदारों के लिए नहीं आए 

आरक्षण के लाभार्थियों के लिए नहीं आए 

आजाद आवाज़ों के लिए नहीं आए।


© संतोष सारंग