जब 'ब्राह्मण देवता की जय' हो सकता है, तो

'लोहार देवता की जय' क्यों नहीं?

'कुम्हार देवता की जय' क्यों नहीं?

'हजाम देवता की जय' क्यों नहीं?

'धोबी देवता की जय' क्यों नहीं?

'ततमा देवता की जय' क्यों नहीं?

'धानुक देवता की जय' क्यों नहीं?

'दुसाध देवता की जय' क्यों नहीं?

'चमार देवता की जय' क्यों नहीं?

'डोम देवता की जय' क्यों नहीं?

'मुसहर देवता की जय' क्यों नहीं?

'भंगी देवता की जय' क्यों नहीं?

'यादव देवता की जय' क्यों नहीं?

'कुशवाहा देवता की जय' क्यों नहीं?

'कुर्मी देवता की जय' क्यों नहीं?

'बढ़ई देवता की जय' क्यों नहीं?

'निषाद देवता की जय' क्यों नहीं?

'तेली देवता की जय' क्यों नहीं?

'अन्नदाता किसान देवता की जय' क्यों नहीं?

'मेहनतकश मजदूर देवता की जय' क्यों नहीं?

इसी तरह छह हजार से अधिक;

'जाति देवता की जय' क्यों नहीं?

मेरा सीधा सवाल है ब्रह्मा से, मनु से

सिर्फ एक जाति को देवता क्यों बनाया?

आज बताओ, क्या बाकी जातियां असुर हैं? 


हे ब्रह्म! हे मनु महाराज! 

या तो सभी जातियों को 'देवता' घोषित करो

या ब्राह्मण से 'भूदेव' की पदवी छीन लो

नहीं तो हम तोड़ देंगे तेरी ये अमानवीय व्यवस्था 

हम करेंगे तेरे इस अन्याय का प्रतिकार


हे शूद्रों-अछूतों! हे वनवासियों!

ध्वस्त कर डालो इस कथित दैवीय परंपरा को 

नेस्तनाबूद कर डालो इनके जातीय प्रभुत्व को  

जेसीबी से खोद डालो वर्ण-व्यवस्था की जड़ों को

और खुद को 'धरती का देवता' घोषित कर डालो।

© संतोष सारंग