• संतोष सारंग

हमारे देश में भांति-भांति के नेताजी हैं. छुटभैया नेता, कद्दावर नेता, दबंग नेता, राजनेता, घूसखोर नेता, फोटू खिंचाऊ नेता, चाटूकार नेता, इश्कबाज नेता, दरबारी नेता. कितना गिनाऊं. फेहरिस्त लंबी है. फिलहाल फोटू खिंचाऊ नेताजी पर ही बात करते हैं. ऐसे किस्म के नेताजी की बात ही निराली है. इन्हें डायबिटीज की बीमारी भले न हो, पर छपास की बीमारी से ये पीड़ित जरू र होते हैं. मेरे बेटे ने एक दिन पूछा, ‘पापा, उस बीमारी का नाम बताइये, जिसका कोई इलाज नहीं है.’ मैंने कहा, ’कैंसर लाइलाज बीमारी है.’ बेटे ने बात काट दी. कहा, ‘नहीं, आप गलत बोल रहे हैं. छपास की बीमारी का कोई इलाज नहीं है.’ मैंने उसकी प्रतिभा को दाद दिया. सोचने लगा. सही में यह एड्स से भी ज्यादा गंभीर बीमारी है. छपास के चक्कर में कई नेता अपने घर के ढेर सारे पैसे फूंक डाले हैं. बीवी की डांट पड़ती है, सो अलग.
     वाकई, नेताजी किस्म के लोग अखबार में अपना नाम या फोटू छपा देख आत्मुग्ध हो जाते हैं. भाग्य से कभी किसी राष्ट्रीय नेता के साथ उनका फोटू छप जाये, तो समङिाये उनके घर की दीवार की शोभा बढ़े बिना नहीं रहती. फ्रेमिंग करा कर चस्पा देते हैं. किसी आगंतुक या मेहमान की नजर पड़ते ही नेताजी गौरवांवित हो उठते हैं. जिस दिन उनका नाम या फोटू ने छपे, तो उस दिन उनका कॉलर टाइट नहीं रह पाता है.
     हमारे शहर में भी कई ऐसे नेताजी हैं, जो अखबार में नाम के लिए ही राजनीति करते हैं. प्रताप बाबू भी धुरंधर नेता हैं. वे मौके की तलाश में रहते हैं. बस किसी तरह उनका नाम छपता रहे. उनका न कोई महान उद्देश्य है और न कोई राजनीतिक सपना. नैतिकता, मूल्य, विचारधारा से उनका कोई नाता नहीं है. वे कभी दक्षिणपंथियों, कभी वामपंथियों तो कभी सवरेदयियों के मंच पर विराजमान दिखते हैं. वे इस जुगाड़ में रहते हैं कि ‘इस मौके पर..भी मौजूद थे’ वाली अंतिम लाइन में भी उनका नाम या फोटू छप जाये. कई बार वे रिपोर्टर और फोटोग्राफर से भी चिरौरी करते नजर आते हैं. वे कोशिश करते हैं कि मंचासीन वक्ताओं के बीच में जगह मिल जाये अथवा मुख्य अतिथि के बगल में जगह बना ली जाये. कैमरा का फ्लैस चमकने के एक सेकंड पहले अपना सिर उचका देते हैं, ताकि कैमरा के फ्रेम में उनका थोभरा आ जाये. किसी तरह वे नेताजी के फोटू के साथ जोंक की तरह चिपक जाते हैं. भई, ‘अखबार में नाम’ का अपना अलग ही मजा है. इस शीर्षक से  एक कहानी भी रची गयी थी. आपने जरू र पढ़ी होगी. कैसे अखबार में नाम छपवाने के लिए एक व्यक्ति मोटरकार के सामने आ गया था. एक और दिलचस्प किस्सा नेताजी के नाम. मैं जानता था कि वे गंभीर राजनीति करनेवाले नेताजी हैं. पर यह सोच गलत निकली. पार्टी ने विश्व रक्त दिवस पर रक्तदान शिविर आयोजित किया था. ट्रैफिक में फंसने के कारण उन्हें थोड़ी देर हो गयी. शिविर में पहुंचे तबतक सभी फोटोग्राफर जा चुके थे. चैनल के रिपोर्टर भी खिसक लिये थे. यह जानकर नेताजी ने खून देने का अपना प्लान चेंज कर दिया. महादान करने जा रहे थे और उनकी तस्वीर अखबार में न छपे, तो रक्तदान करना व्यर्थ ही होता न!
     आजकल मुङो भी छपास की बीमारी लग गयी है. ‘बस यूं ही’ के लिए जब से लिखने लगा हूं, तब से छपास का कीड़ा कुलबुलाने लगा है. लेख के साथ फोटू छपता तो कहना ही क्या? मैं ही क्यों, मेरे जैसे हजारों लोग छपास की बीमारी से आजकल ग्रसित हैं.