प्रकृति व प्रेम का अनंत विस्तार है शेफाली का 'गर्भ में चांद'

----------------------------------------------------------------   डाॅ संतोष सारंग कवि जब खुद कविता बन जाता है, तो वह शब्दों की अनथक यात्रा पर निकल पड़ता …

Read more

मैं रोज सीखता हूं

मैं रोज सीखता हूं हरीतिमा आच्छादित बगियों से रंग औ' सुगंध बिखेरते गुलशन से आम्रमंजरियों पर मंडराते भ्रमर से निराशा-भरे जीवन में रंग भरना.  मैं रोज सीख…

Read more

'कारक के चिन्ह' में विद्रोह करतीं कविताएं

----------------------------- डाॅ संतोष सारंग कवियों की भीड़ में एक मुकम्मल कवि होना असाध्य कर्म है। कवि बनने के लिए कविताई करना तो आसान है, मगर जनता के …

Read more

इतिहास बदलने आया हूं

--------------------------- डॉ. संतोष सारंग  गुजरात से हूं इतिहास बदलने आया हूं झूठ की बुनियाद पर संसार बदलने आया हूं नफ़रत का मशाल लिये धर्म का कटार लिये…

Read more

मैं हूं वो लड़की

संतोष सारंग तुम मेरे अरमानों का गला घोंट दो तुम मेरी इज्जत को कर दो तार-तार तुम मेरे जख्मों पर नमक छिड़क दो तुम मेरी लाश पर छिड़क दो केरोसिन मैं हूं वो लड़क…

Read more

बेटा

संतोेष सारंग बेटा मां और बीबी के बीच ऐसे पिसता है जैसे जांता के दो पाटों के बीच पिसता है धन-धान्य शादी के बाद मां को लगता है बेटा बदल गया है सिर दुखने पर…

Read more

क्षितिज

संतोष सारंग क्षितिज  जिसकी छोर पर सूरज की लालिमा वसुंधरा की कालिमा एक-दूसरे से जैसे मिल जाने को हो आकुल क्षितिज जिसके पार अद्भुत अंबर रत्नगर्भा धरती के मि…

Read more